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Thursday, October 2, 2008

जेहाद या आतंकवाद का फसाद

जेहादी आतंक का भूमंडलीकरण हो चुका है। सारी दुनिया को कट्टरपंथी इस्लामी आस्था के लिए मजबूर करने वाले जेहादी युद्ध विश्वव्यापी है और इससे संपूर्ण मानवता आतंकित है। दक्षिण पूर्व में आस्ट्रेलिया इससे पीड़ित है। फिलीपींस, थाईलैंड इसके प्रभाव क्षेत्र हैं। रूस, मिस्त्र, युगोस्लाविया, स्पेन पीड़ित है। हलाँकि अमेरिका और ब्रिटन खुलकर आतंकवाद के खिलाफ मैदान में है। यहाँ तक की अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने जेहादी आतंकवाद को 'इस्लामी फासीवाद' कहा था।

अगर बात हिन्दुस्तान की करे तो हिन्दुस्तान जेहाद के नाम पर बढ़ रहे आतंकवाद के निशाने पे है। हम जिहाद नामी इस्लामी आतंकवाद से पिछले दो दशक से लड रहे है। जिन दिनों हिन्दुस्तान इस्लामी आतंकवाद से लड रहा था उन दिनों अमेरिका सहित पश्चिमी विश्व के लोग भारत में कश्मीर केन्द्रित आतंकवाद को स्वतंत्रता की लडाई मान कर हाथ पर हाथ धरे बैठे थे। और हमने भी कभी अपने देश में चल रहे आतंकवाद को परिभाषित कर उससे लड्ने की कोई रणनीति अपनाई??? शायद कभी नहीं? इसके पीछे दो कारण हैं। एक तो हमने कभी आतंकवाद की इतना भयावह रूप की कल्पना नहीं की थी, दूसरा भारत में आतंकवाद के लिये सदैव पडोसी देश को दोषी ठहरा कर हमारे नेता अपने दायित्व से बचते रहे और तो और आतंकवाद के इस्लामी पक्ष की सदैव अवहेलना की गयी और मुस्लिम वोटबैंक के डर से इसे चर्चा में ही नहीं आने दिया गया।

हिन्दुस्तानियों ने जिहाद प्रेरित इस इस्लामी आतंकवाद से लड्ने के तीन अवसर गँवाये हैं। (१) 1989 में इस्लाम के नाम पर पकिस्तान के सहयोग से कश्मीर घाटी में हिन्दुओं को भगा दिया गया तो भी इस समस्या के पीछे छुपी इस्लामी मानसिकता को नहीं देखा गया। और कश्मीरी हिन्दुओं को उनको हाल पर छोर दिया गया। (२) 1993 में, जब जिहाद प्रेरित इस्लामी आतंकवाद कश्मीर की सीमाओं से बाहर मुम्बई पहुँचा। इस अवसर पर भी इस घटना को बाबरी ढाँचे को गिराने की प्रतिक्रिया मानकर चलना बडी भूल थी और यही वह भूल है जिसका फल आज भारत भोग रहा है। (३) 13 दिसम्बर 2001, जब संसद पर आक्रमण के बाद भी पाकिस्तान के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गयी। यह अंतिम अवसर था जब भारत में देशी मुसलमानों को आतंकवाद की ओर प्रवृत्त होने से रोका जा सकता था। इस समय तक भारत में आतंकवाद का स्रोत पाकिस्तान के इस्लामी संगठन और खुफिया एजेंसी हुआ करते थे और भारत के मुसलमान केवल सीमा पार से आने वाले आतंकवादियों को सहायता उपलब्ध कराते थे। इसके बाद जितने भी आतंकवादी आक्रमण भारत पर हुए उसमें भारत के जिहादी संगठन लिप्त हैं। और इन सबसे भी भयावह तो अभी के हालात् में राजनीतिक दलों और जामिया जैसे शिक्षण संस्थान का आतंकवाद का खुला समर्थन है। शिक्षा के क्षेत्र से जेहादी वायरस को दूर करना होगा।

जेहाद अपने को नये रंग में ढालने की कोशिश कर रहा है। उसका यह तेवर कितना ख़तरनाक, उसकी धार कितनी तीखी तथा जहर बुझी है, उसका अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ दिनों पहले पाकिस्तान की लाल मस्जिद में जुटी सैकड़ों महिलाओं ने अपने बच्चों को जेहादी बनाने की शपथ ली थी। महिलाओं की इस सभा को मस्जिद के मौलाना अजीज की बेटी ने संबोधित किया था। यह सही है कि हिन्दुस्तान जैसे कई देशों की इस्लामिक संस्थाएं, शिक्षण-संस्थान और उलेमा तथा विद्वान यह प्रचार कर रहे हैं कि आतंकवादी जिस जेहाद शब्द के इस्तेमाल के साथ निर्दोष लोगों का कत्ल कर रहे हैं, इस्लाम में उसको पूरी तरह ख़ारिज किया गया है। इन संस्थाओं ने इस मुत्तलिक बाकायदा मुहिम संचालित कर रखी है।

वक़्त आ गया है की, आतंकवाद के खिलाफ सारे देशो को एक मंच पर आना होगा, और इस जेहाद रुपी भाष्मासूरी विचारधारा से निजात पाया जाये। वर्ना यह सिलसिला एक अटूट श्रृंखला बनता जाएगा और हर ओसामा-बिन लादेन के पीछे आतंकी कमान संभालने के लिए उसका बेटा हमजा-बिन लादेन के रूप में तैयार खड़ा मिलेगा।

वक़्त आ गया है की जनता अपने राजनितिक आका से सवाल करे की सिमी उनके लिए मायने रखती है या जनता की सुरक्षा??

वक़्त आ गया है की जामिया जैसे संस्थान से पूछे की, क्या हक़ बनता है जनता के पैसे से आतंकवादियों की कानूनी मदद करने का???

वक़्त आ गया है अर्जुन सिंह, लालू परसाद यादव, राम विलास पासवान, मुलायम सिंह, अमर सिंह जैसे छदम धर्मनिरपेक्ष नेताओं को देशभक्ति की पाठ याद दिलाने का????

क्योकि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं !!!

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