मुंबई हमले के विरोध में सारा देश उठ खड़ा हुआ हैं। हमले के विरोध में बुधवार को लोगों का जन सैलाब मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया के निकट इकट्ठा हुई। दिल्ली में भी जंतर-मंतर और इंडिया गेट पर मुंबई में हुए आतंकी हमले के विरोध में जन सैलाब उमर पड़ा। 59 घंटे की आतंक ने देश को दहशत और नफरत के जज़्बातों में गोते लगाने को मजबूर कर दिया हैं। जन सैलाब में पाकिस्तान के साथ-साथ राजनेताओं के खिलाफ़ जबर्दस्त गुस्सा देखने को मिला। देश में राजनेताओं के खिलाफ़ ऐसी नफ़रत कभी नहीं देखी गयी।
यह देश की जनता की स्वत:स्फूर्त भावना थी। यह आयोजन प्रायोजित नहीं था, एसएमएस, मेल, रेडियो स्टेशनों, टीवी चैनलों से लोगों को आतंकवाद के खिलाफ इस प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की गई थी। इस जनआंदोलन में सभी वर्ग के लोगों ने हिस्सा लिया। जिनमें छात्र, स्वयंसेवी संगठन के लोग, प्रोफ़ेसर, बुद्धिजीवी, उद्यमी और बॉलीवुड के सितारे भी शामिल थे। प्रदर्शनकारियों के हाथों में तिरंगा झंडा, तख़्तियाँ और बैनर थी। ज़्यादातर प्रदर्शनकारी का मानना था कि हमारे सॉफ्ट स्टेट की पॉलिसी और राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते ही कोई भी हमारे 'घर' में घुसकर हमें मारकर चला जाता हैं।
वहीं दूसरी तरफ़ मुंबई में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे आमजनों को मुंबई पुलिस ने बलपूर्वक भगा दिया। जिसके लिये कोई ठोस कारण नहीं बताया गया। शायद शासन की बुनियाद को हिला कर रख देनी वाली इस विरोध प्रदर्शन को सरकार पचा नहीं पा रही।
By: Sumit K Jha
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5 weeks ago
2 comments:
यह जागरण बडी अल्प अवधि का है.
प्रिय सुमीत भाई
common man ने अपनी चेतना का स्तर बताया लेकिन आप इस पूरी एकत्र भीड़(मैं इसे भीड़ ही कहूंगा)को स्वतः स्फूर्त नहीं कह सकते हैं क्योंकि इसके प्रेरक तत्त्व सामने नहीं आए थे यही तो योजना है मेरे भाई। ये एक तात्कालिक असर है दो चार दिन तक अवश्य रहेगा। सोलहवीं शताब्दी से लेकर आज तक की भारतीय जनता के बारे में मेरा अपना निजी अध्ययन है जिसका आधार ढेर सारी इतिहास व समाजशास्त्र की वो किताबें हैं जो दशा निर्धारण करती हैं। कल मेरी एक सामान्य पाकिस्तानी परिचित से लम्बी बात हुई उसने कहा कि राजनेता मुल्क की तरक्की छोड़ कर आवाम को पड़ोसी से नफ़रत के फंदे में उलझाए रहते हैं क्या भारत आक्रमण करेगा? हम गरीबों का क्या होगा मेरी बेकरी बंद हो जाएगी हम सब भूखे मरेंगे लेकिन नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ये हाल आम आदमी का है जो हर देश का एक जैसा है युद्ध नहीं अमन चाहता है,प्यार चाहता है,आतंक नहीं शान्ति चाहता है लेकिन कुछ कर पाना उसकी पहुंच में नहीं है बस दुआ करता है। समस्या की जड़े खोजिये।
सादर प्रेम सहित
डा.रूपेश श्रीवास्तव
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