मुंबई में उत्तर भारतीय छात्रों के ऊपर राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के हमले के विरोध में लगातार तीन दिनों से बिहार जल रहा हैं। और इसका असर बिहार से बाहर एवं बिहार के भीतर चलने वाली अधिकतर ट्रेनों पर देखी जा सकती हैं। पूर्व मध्य रेलवे के तहत चलने वाली 38 ट्रेनें रद्द कर दी गयी। देश के कई हिस्सों में लाखों यात्री फसे पड़े हैं।
बिहार में हाल फिलहाल में ऐसा उग्र प्रदर्शन देखने को नहीं मिला था। बिहार के छात्रों के साथ बद्सुलुकी कोई नयी बात नहीं हैं। पहले भी मुंबई में छात्रों के साथ जमकर गुंडागर्दी हुई हैं। तो आखिर यह बवाल इस बार क्यों ? क्या बिहार के युवाओं ने सियासतदानों से हिसाब मांगना शुरू कर दिया हैं ? बिहार के युवाओं का ये गुस्सा आखिर किस पर है- राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, शिव सेना, बिहार के रहनुमाओं या फिर अपने आप पे।
कभी दुनिया भर में शिक्षा की अलख जगाने वाला यह बिहार आखिर क्यों अपने छात्रों को देश भर में नौकरी की तलाश में भटकने को विवश कर रहा है? क्या गंगा की भूमि इतनी उज्जड हो गयी है की अपने पूजने वालो की पेट भी नहीं भर सकती ?
इन सवालों का जवाब बिहार के गर्त में ही दबा पड़ा हैं। लंबे समय से बदहाली का जीवन गुज़ार रहे बिहार के युवाओं को इस घटना ने दफ़न हो चुके बुनियादी मुद्दों को सतह पर लाने का मौका दिया हैं। सूबे के रहनुमाओं ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए यहाँ के भविष्य के साथ सिर्फ खिलवार किया हैं। कभी जातिवाद के नाम पे तो कभी नक्सलवाद के नाम पे, हमेशा लड़ना सिखाया। विकास की बात कभी नहीं की गयी, तो विकास की राजनीति की तो सोच ही बेमानी हैं।
बिहार गंगा के पूर्वी मैदान मे स्थित है। बिहार की भूमि मुख्यतः नदियों के मैदान एवं कृषियोग्य समतल भूभाग है। और यहाँ के किसानों ने अपने खून पसीनों से पंजाब के खेतों को हराभरा किया। है।प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ के कारण यहाँ के खेत बहुत उपजाउ हो सकते थे। परन्तु इसी बाढ़ के कारण यह क्षेत्र तबाही के कगार पर खड़ा है। हाजीपुर का केला एवं मुजफ्फरपुर की लीची पूरे देश में मशहूर हैं, और यह एक कुटीर उद्योग बन सकता हैं। लेकिन कभी इसके लिए इमानदार कोशिश नहीं की गयी। मखाना की पैदावार बिहार के दरभंगा एवं मधुबनी जिले में होती हैं, लेकिन शायद ही इसके खेती आगे बढाया गया हो। मधुबनी चित्रकला भी एक अच्छा कुटीर उद्योग साबित हो सकता था। पटना,दरभंगा,राजगृह,बोधगया,विक्रमशिला,अरेराज और चंपारण दर्शनीय स्थल हैं, जो रोजगार का जरिया बन सकता था।
अगर बात शिक्षा की करे तो एक समय बिहार शिक्षा के प्रमुख केन्द्रों में से एक माना जाता था लेकिन शैक्षणिक संस्थानों में राजनीति तथा अकर्मण्यता के प्रवेश करने से शिक्षा के स्तर में गिरावट आई गयी। तकनीकी शिक्षण संस्थानों की कमी ने यहाँ के छात्रों को पलायान करने पर विवश किया। उद्योग धंधो की कमी ने फिर इन्हें वापस आने नहीं दिया।
सूबे के सियासतदानों ने कभी बिहार को आगे बढाने के लिए इमानदार कोशिश नहीं की, और मुंबई के बहाने बिहार के युवाओं ने इसका हिसाब माँगना शुरु कर दिया हैं। ये गुस्सा न तो राज ठाकरे के लिए है और न शिव सेना के लिए। यह गुस्सा है अपनी लाचारी पर। यह गुस्सा है बिहार के रहनुमाओं पर। और शायद इसकी जरूरत बिहार और बिहारी अस्मिता के लिए जरूरी था।
सुमीत के झा(sumit k jha)
www.nrainews.com
Friday, October 24, 2008
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