* लोकतंत्र के महापर्व में वाक्-चलीसा * आखिर क्यों फ़ेंका जरनैल सिंह ने जूता ? * लोकतंत्र का महापर्व और "कुछ ख्वाहिश" * "कश्मीरी पंडित" होने का दर्द * राजनेताओं हो जाओ सावधान, जाग रहा हैं हिंदुस्तान * जागो! क्योंकि देश मौत की नींद सो रहा हैं। * आखिर यह तांडव कब तक? * पाकिस्तानियों में अमेरिकी नीति का खौफ * खामोशी से क्रिकेट को अलविदा कह गया दादा * कैसे निपटा जाए आतंकवाद से- 01 * कैसे निपटा जाए आतंकवाद से- 02 * कैसे निपटा जाए आतंकवाद से- 03 * कैसे निपटा जाए आतंकवाद से- 04 * क्या इसे आतंकवाद न माना जाये ? * कही कश्मीर नहीं बन जाये "असम" * जेहाद या आतंकवाद का फसाद * बेबस हिन्दुस्तान, जनता परेशान, बेखबर हुक्मरान * ‘आतंकवाद की नर्सरी’ बनता आजमगढ़ * आतंकवाद का नया रूप * आतंकवाद और राजनीति *

Sunday, July 27, 2008

कितने सुरक्षित है हम???

बेंगलुरु और अहमदाबाद श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के बाद कितनी सुरक्षित है दिल्ली??

यह एक प्रश्न नही चेतावनी हैं. कुछ भी नही बदला हैं राजधानी दिल्ली में. आतंकियों का अगला निशाना बन सकती है दिल्ली.

कल शाम जब अहमदाबाद में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट को अंजाम दी जा रही थी, मैं अपने एक दोस्त को छोङने नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन गया हुआ था. अहमदाबाद बम विस्फोट की सुचना मिलने के बाद मेरे अंदर की पत्रकारिता जाग गयी और मैंने स्टेशन की सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने की ठानी. और जो मैने अपने आँखो से देखा, वह सत्यता से परे था. पुलिस के जवान समान जाचने के बदले, बाँते करनॆ मॆ मशगुल थे. और तो और कुछ जवान टिकट जाचने मे टीटी साहब को मदद कर रहे थे. उनसे कुछ दुर टैक्सी दलाल यात्रीयो को फांसने मे लगे थे.


जब इतने संवेदनशील जगह सुरक्षा व्यवस्था का यह हाल हैं, तो पुरी दिल्ली की तो बात करना ही बेकार है.

सिलसिलेवार बम धमाकों की जिम्मेदारी लेने वाले और खुद को इंडियन मुजाहिदीन बताने वाले संगठन ने इस तरह के और हमले करने की भी धमकी दी है. ये वही संगठन हैं जिसने पहले जयपुर और उत्तर प्रदेश में हुए विस्फोटों की जिम्मेदारी भी ली थी.

तो आखिर कैसे दिल्ली वासी अपने आप को सुरक्षित समझे???

आतंकवाद और राजनीति

26 जुलाई 2008, स्थान- गुजरात का अहमदाबाद शहर. 17 श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों में कम से कम अठारह व्यक्तियों की मौत, और 100 लोग घायल.

25 जुलाई 2008, स्थान- सूचना प्रौद्योगिक शहर बेंगलुरु. एक घंटे के भीतर हुए आठ विस्फोटों से एक महिला की मौत हो गई थी, जबकि सात लोग घायल हो गए.

आने वाली सुबह पता नही किसके घर के चिराग अपने साथ बुझा ले जायेगी??



अहमदाबाद धमाकों के सुराग माननीय केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल जी के पास हैं, लेकिन देशहित में वे इसे सार्वजनिक नहीं करेंगे. कोई उनसे पुछे आखिर किस देशहित की बात वह कर रहे हैं????



जिस लगन और मेहनत से हमारे राजनीतक आका सरकार गिराने और बचाने की कवायद करते हैं, काश उसकी आधी मेहनत भी देश की सुरक्षा के लिए किया होता. तो आतंकवाद का यह नंगा नाच न होता. आतंकी लगातार अपने मंसूबों में कामयाब न होते.




राजनीतिक रुप से विफल इस देश का सफल नागरिक आतंकवाद की वेदी पे अपनी बली दे रहा हैं. दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढाने वाला यह देश, आज अपने नागरिको को सुरक्षा नही दे पा रहा. हर बार विशेष जाँच दल बनता है, जाँच चलती है, न्यायालय में केस चलता है और धीरे धीरे फिर भूल जाते हैं.



सोचिए, 9/11 के बाद अमरीका में और 7/7 के बाद ब्रिटेन में कोई बडा आतंकवादी हमला नहीं हुआ. यहाँ तक कि स्पेन जैसे देश में मेड्रिड धमाकों के बाद कोई हमला नहीं हुआ. हालत यह होने लगी है कि अब आतंकवादी हमले बाढ, चक्रवात और सुखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं जैसे लगने लगे हैं.



हम भारतीय आतंकवाद के खिलाफ लडाई में हार रहे हैं.दूनिया के समक्ष देश की छवि एक कमजोर राष्ट्र की बन रही है. देश के निति निर्धारकों मे ईच्छाशक्ति की कमी है. हम हद से अधिक उदासीन और सहिष्णु हो गए हैं.




हमारा देश सचमुच में एक कमजोर देश हैं. हमारा देश राजनीतिक रुप से एक विफल देश साबित हो रहा हैं, और हम इस देश के सफल नागरिक.

Tuesday, July 22, 2008

अग्निपरीक्षा: आखिर किसकी होगी जीत!

संसद में अभी तक की घटनाक्रम के अनुसार, माननीय बाहुबलि सांसदो के कारण सदन की कार्यवाही 15 मिनट के लिए स्थगित करनी पड़ी. लोकसभा के इतिहास में पहली बार सदन के बीच में नोटों की गड्डियां दिखाई गईं. विपक्ष ने सरकार पर सांसदों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगा सबूत पेश किए. मायावती पर सांसदों को बंधक बनाने का आरोप.


लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के उपनेता विजय कुमार मल्होत्रा ने संप्रग सरकार पर विश्वासमत प्रस्ताव हासिल करने के लिए अपराधियों का सहारा लेने का आरोप लगाया. जवाब मे माननीय पप्पु यादव और शहाबुद्दीन ने विरोध प्रकट किया. और सत्तापक्ष के सदस्यों ने हंगामा कर दिया. इसपर अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही पंद्रह मिनट के लिए स्थगित कर दी. मैंने "खबरनामा" मे अपने पिछले पोस्ट में लिखा था, "अवाम की राजनीतक भव्षिय के फैसले मे माननीय सजयाफ्फता संसद सदस्य भी सरीक होंगे. और ये तरुप के इक्के साबित होंगे". यह इस देश के नागरिको की बदकिस्मती हैं.


दुसरी सबसे बङी खबर, लोकसभा के इतिहास में पहली बार सदन के बीच में नोटों की गड्डियां दिखाई गईं। मुरैना से भारतीय जनता पार्टी के सांसद अशोक अर्गल ने अध्यक्ष के आसन के सामने नोटों से भरे बैग खोलने शुरु कर दिए. अर्गल ने आरोप लगाया कि उन पर धन का प्रलोभन देकर विश्वास मत का समर्थन करने का दबाव डाला जा रहा है. सदन में विरोधी पक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने आरोप लगाया कि एक करोड़ रुपए पेशगी के तौर पे दिये गये थे,जबकि कुल सौदा आठ करोड़ रुपए का था. भाजपा के ही महावीर भगोरा और फग्गन सिंह कुलस्ते ने भी नोटों के बंडल भरे बैग आसन के सामने रखे.


वही दुसरी तरफ समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती पर आरोप लगाया है कि उन्होंने 6 सांसदों को सोमवार से बंधक बनाकर उत्तर प्रदेश भवन में रखा है.


अगर इन घटनाक्रमों की विश्लेशण की जाए,तो यह साफ है कि इस पुरे कवायद में असली मुद्दा कही गौण सा हो गया हैं. बढ़ती महंगाई के इस दौर मे अगर चुनाव थोपा गया, तो यह जनता के लिए
असहनीय होगा.

सदन मे मतदान शाम 7.15 बजे होने की संभावना हैं.

Friday, July 18, 2008

बचेगी सरकार, या लगेगी चुनाव की मार

अग्निपरीक्षा की वेदी सज चुकी हैं, बस इंतजार हैं 22 तारीक की मुहॅत का। अग्निपरीक्षा मे बली तो चढनी ही है। अब देखना है की, यह बली चढती हैं कांग्रेस शासित केंद्र सरकार की,या जनता,या फिर संविधान की मान मर्यादा की। जिस तरह से जादुई आंकाङा पाने के लिए खुलेआम मोलभाव चल रहा हैं,यह एक खराब परंपरा की शुरूआत हैं।


आज पुरी देश की राजनीती, चंद मतलबपरस्त राजनीतिक दलो के इदॅगिदॅ नाच रही हैं। जिनका न तो कोई एजेंडा है, और न इन्हे देश की प्रगति से कोइ वास्ता। इन्हे तो बस क्षेञवाद और जातिवाद की गंदी आग मे अपनी रोटी सेकनी हैं। और वर्तमान राजनीतिक समीकरन इन्हे खाद मुहैया करा रही है।


सरकार बचाने के फेरे मे कही हवाई अड्डे के नाम बदले जा रहे है,तो कही मंत्री पद की पेशकश की जा रही है। और तो और अवाम की राजनीतक भव्षिय के फैसले मे माननीय सजयाफ्फता संसद सदस्य भी सरीक होंगे। और ये तरुप के इक्के साबित होंगे।


सिधांतो की राजनीति संसद के गलियारे मे कही खो गई , और एक नई विचारधारा का उदय हुया। मतलबपरस्त,क्षेञवाद और जातिवाद विचारधारा का उदय।


शायद यह सरकार बच जाये, या न बच पाये। लेकिन एक बात तो साफ हैं, ये संविधान की हार होगी, यह अवाम की हार होगी।


और शायद अवाम इसके लिए तैयार भी हैं।।

Tuesday, July 8, 2008

आह, एक सुंदर सपना टुट गया.

भाई साब, बडे बुजुर्ग सही कहते थे- "बेटा सपना मत देख"। वरना दिल टुट जाएगा, लेकिन नही. जवानी का जोश, उफनता हुआ गरम खून, और मैने भी सपना देख लिया। लेकिन है इस से पहले की आप पाठकगण कुछ गलत सोचे, हम ख़ुद ही बताये देते हैं - यह सुंदर सपना था तेरह साल बाद ऐशिया विजेता बनने का।

लेकिन भाई साब अपने लड़के बडे शिष्टाचारी है, बचपन में सिखाई हर बात याद है इनको, तो फिर ये कैसे भुल जाते। लो भाई खेलेंगे ही नही, बडे बुजु्गों का इज््त भी रह जायेगा, और इन निठ़््लो का सपना देखने का आदत सुधरेगा।


और लो भाई साब, धोनी के रणबुंकारे बडे बुजु्गों की मान रखने के लिए मुँह की खा कर वापस आ गई। लेकिन इऩकी शान में कोई गुस्ताकी नही, लङको ने मेहनत बहुत की। घुङसवारी की, जल कीङा् की, पोङोसियो के साथ मस्ती की...........कितने थक गये हैं बेचारे। अब आप क्या चाहते हो, जान दे दे आप के लिए।

और ये सुधरना सुधारना क्या लगा रखा हैं? इसकी जरुरत तो आप को हैं। जब देखो जीत, क्या हैं, कोई काम नही हैं क्या। या और कोइ खेल नही बचा हैं इस देश मे??? जाओ यार, हाकी और पता नही कितने हजार और खेल बचे हैं इस देश में, कभी उनपर भी नजरें इनायत कर दो। नही तो चाईना में भी मेडल नही मिलेगा।

शाबास नोएडा पुलिस ।

ग्रेटर नोएडा पुलिस ने कुलीसारा चेक पोस्ट के पास छापा मार कर 8कसाई को गिरफ्तार किया, इनपे गोहत्या का आरोप था। पुलिस ने इनके पास से 1ट्रक, और 4गाय बरामाद किया। इस गिरोह ने नोएडा और आस पास के झेञो में पिछले कुछ दिनों से गोहत्या कर के सनसनी फैला दी थी। जिस से नोएडा का सामाजीक सद़भाव बिगर रहा था।

सुरजपुर थाना प्रभारी सुशील दुबे का कहना था की इन औठौ कॆ गिरोह ने पिछलॆ कुछ दिनौ से अवैध गोहत्या कर के तनाव फैला दिया था।

पुलिस ने इने रंगेहाथ हिंङन नदी के किनारे से पकडा,और गोहत्या निरोघक कानुन के अंतर्रगत जेल भेज दिया।

Sunday, July 6, 2008

नशे में खोता बचपन !


'हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया..' आज की पीढी का मूलमंत्र बन गया है । कही धुएं में खो गया है आज का बचपन, मासूमियत सिगरेट, बीड़ी व पान-मसाला के भेट चढ़ गयी हैं। अब स्कूलों के पास चनाचूर, आइसक्रीम........ से जयादा, सिगरेट, बीड़ी व पान-मसाला बिकती हैं।

'18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को सिगरेट पान-मसाला देना प्रतिबंधित है।' लेकिन कहा दिखती है, ये कानून । आज शहर की सड़कों पर खुलेआम 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे सिगरेट का धुआं उड़ा रहे हैं। इनका पालन देश के किसी कोने में नहीं हो रहा। विक्रेता बिना किसी सरोकार के महज अपने जरा से लाभ के लिए बच्चों को सिगरेट, गुटका, पान-मसाला आसानी से बेच रहे हैं। नई पीढ़ी नशे के इस जाल में फंसकर अपने जीवन के मूल उद्देश्य से भटक रही है। इस नशे के आदी हो चुके बच्चे धीरे-धीरे परिवार व समाज से कटते जा रहे हैं।


कई तो इस नशे की दुनिया में इतना आगे निकल चुके हैं कि गुटका व सिगरेट तो महज उनके लिए मामूली नशा है। दवाओं के नशे इनके लिए नयी बिकल्प बनती जा रही हैं। व्हाइट फ्ल्यूड, आयोडेक्स, स्पस्मोप्रोक्सिवं, कोरेक्स, किरोसिन तेल और पता नहीं क्या क्या इन मासूमो के लिए कूल बनता जा रहा हैं।

पैसे की अंधी दौर, सामाजिक ताना बाना का टूटना, एकल परिवार व्यवस्था का आना, व्यस्त अभिभावकों का बच्चो को समय नहीं दे पाना, शायद इस समस्या की जर हैं । बच्चों से नशे का सामान मंगवाना और बच्चों के सामने इसका सेवन करना बच्चों पर काफी बुरा प्रभाव डालता है। नाबालिगों को नशे की इस गर्त में धकेलने के लिए स्कूल भी एक हद तक जिम्मेदार हैं।


कौन है इसके लिए जिम्मेदार ???

हम....... हमारा समाज..........या फिर हमारी व्यवस्था !!!!!



येः वक़्त सोचने का नहीं, कुछ करने का है, वर्ना इस देश की आने वाली पीढी नशे की धुंध में कही खो न जाये ।


Saturday, July 5, 2008

आप करे तो सही, हम करे तो गलत ! "वाह रे धर्मनिरपेक्ष" !!!

कश्मीर में अमरनाथ शाईन बोर्ड को दी गई जमीन आख़िर कार वापस ले ली गई। और यह कोई नई बात नही है, कश्मीर की हालात को ध्यान से देखने वालो के लिए। काफ़ी हो हल्ला हुआ ,हिंसा का नंगा पर्दशन हुआ घाटी में। दलील ये दिया गया की ये हिंदुओ को घाटी मे बसाने और मुस्लिमो को अल्पसंख्यक बनाने की चाल है। अब कोई सवाल नही उठ रहा ही चालिस एकड मे कितने हिंदु बस जायेगे जो सारे कशमीर के मुस्लिमो को अल्पसंख्यक कर देंगे।

अब यहाँ अहम् सवाल ये उठता है की, हिन्दुओ के आस्था की पर्तीक अमरनाथ मंदिर को अगर चालीस एकड जमीन नहीं दी गयी, तो क्या ये धर्मनिरपेक्षता" है?? कश्मीर मे अमरनाथ शाईन बोर्ड को दी गई जमीन जो सिर्फ़ यात्रा के समय यात्रियो को रुकने और उनके लिये स्नानागार एंव शौचालय बनाने के लिये प्रयुक्त होनी थी पर इतना बडा बवाल, कहा तक उचित हैं??

जब कोई बंगलादेशी मुस्लिमो के आने से हिंदूओ के अल्पसंख्यक होने की बात करता है तो ये वोट के सौदागर सत्यता से आंख फ़ेर लेते है। आज देश के हर कोने में लाखों की संख्या में बंगलादेशी रह रहे है। जिस से देश का सामाजिक ताना बना बिगर रहा हैं। देश में बड़ी संख्या में मौजूद अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों से भारत की आंतरिक सुरक्षा को गंभीर खतरा है। गृह मामलों की एक स्थायी संसदीय समिति की संसद में पेश नवीनतम रिपोर्ट में यह कहा गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इसे हल्के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। सुषमा स्वराज की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि भारत-बांग्लादेश सीमा पर जाली नोटों का भी व्यापक वितरण हो रहा है। गृह मंत्रालय की अनुदान मांगों पर समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि समिति पूरी दृढ़ता से सिफारिश करती है कि सीमा पर होने वाली गतिविधियों की कड़ाई से निगरानी की जाए।

वांमपंथी और मानवाधिकार कार्यकर्ताओ इस वक़्त में क्यों चुप हैं । मानवाधिकार कार्यकर्ता और वांमपंथी क्यो नही कभी इस बात को लेकर सरकार को घेरते है।

क्या यही "धर्मनिरपेक्षता" है ???

Thursday, July 3, 2008

अफीम और अफगानिस्तान

अफगानिस्तान तालिबानी शासन के दौरान आतंकवादी गतिविधियों के केन्द्र के रूप मे कुख्यात रहा था. तालिबानी शासन के खात्मे के बाद भी अफगानिस्तान मे अल कायदा के आतंकवादियों की सक्रीय भूमिका रही है.

इसके अलावा अफगानिस्तान सदा से अफीम के उत्पादन और तस्करी के लिए भी कुख्यात रहा है. इस वजह से अफगानिस्तान सयुंक्त राष्ट्र संघ मे गैरकानूनी राष्ट्रों की सूचि मे शामिल है. अफगानिस्तान मे अफीम के उत्पादन और उसकी तस्करी से सम्बंधित कुछ तथ्य:

*दूनिया मे अफीम के कुल उत्पादन का 95% हिस्सा केवल अफगानिस्तान मे उगाया जाता है.

*अधिकतर अफीम के खेत तालिबानी लडाकों के कब्जे में रहे हैं.

*तालिबानी लडाके अफीम की तस्करी से प्राप्त आय का उपयोग शस्त्र खरीदने मे करते हैं.


*अफीम का सबसे बडा खरीददार देश अमरीका है.


*अफीम एक नशीला पदार्थ है, परंतु उसका उपयोग दवाई, अल्कोहोल मे भी होता है.


*अफगानिस्तान मे अफीम उगाने वाले किसान को प्रति किलो अफीम के बदले करीब 300 डॉलर मिलते हैं.


*यही अफीम अफगानिस्तान के बाहर 800 डॉलर प्रति किलो के भाव से बिकता है.


*यूरोपीय देशों मे अफीम के द्वारा हेरोइन नामक नशीला पदार्थ बनने के बाद इसकी किमत 16000 डॉलर प्रति किलो तक पहुँच जाती है.


*अफगानिस्तान मे सन 2006 मे 6630 टन अफीम का उत्पादन हुआ था .


source: Google

तरबूज होता है प्राकृतिक वायग्रा

हिन्दी में तरबूज, बंगाली में तोर्मुज, गुजराती में इन्द्रकिन और कन्नड़ में खरबूजा। यह तो हम सब को पता है, लेकिन क्या आप जानते है - तरबूज होता है प्राकृतिक वायग्रा।

तरबूज मात्र एक स्वादिष्ट एवं पानी से भरपूर त्वरित उर्जा देने वाला फल ही नहीं होता है बल्कि यह गुणों से भरपूर भी है। और अब एक भारतीय अमरीकी वैज्ञानिक ने दावा किया है कि तरबूज वायग्रा के जैसा असर भी पैदा करता है।

टेक्सास के फ्रुट एंड वेजीटेबल इम्प्रूवमेंट सेंटर के वैज्ञानिक डॉ भिमु पाटिल के अनुसार,"जितना हम तरबूज के बारे में शोध करते जाते हैं, उतना ही और अधिक जान पाते हैं। यह फल गुणो की खान है और शरीर के लिए वरदान स्वरूप है."

तरबूज में सिट्रुलिन नामक न्यूट्रिन होता है जो शरीर में जाने के बाद अर्जीनाइन में बदल जाता है। अर्जीनाइन एक एम्यूनो इसिड होता है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है और खून का परिभ्रमण सुदृढ रखता है।

यह मोटापे और मधुमेह को भी रोकने का कार्य करता है।

अर्जीनाइन नाइट्रिक ऑक्साइड को बढावा देता है, जिससे रक्त धमनियों को आराम मिलता है। यह कुछ कुछ वायग्रा जैसा ही कार्य करता है. इस प्रकार से इसे प्राकृतिक वायाग्रा कहा जा सकता है.

हालाँकि इससे वायग्रा जितना असर तो नहीं होता लेकिन कोई साइड इफैक्ट भी नहीं होता.

source- Times Of India

Tuesday, July 1, 2008

बेलगाम आतंकवाद! क्या भारत एक कमजोर देश है?

दिल्ली, मुम्बई, हैदराबाद, वाराणसी, मालेगाँव, अजमेर, लखनऊ, इलाहाबाद, जयपूर...

यह सूचि इससे भी बडी है, और आने वाले समय में काफी लम्बी हो सकती है। इन सभी जगहों पर सुनियोजित तरीके से आतंकवादी हमले किए गए। बम विस्फोट करवाए गए और सैंकडों लोगों की जानें गई। हर बार विशेष जाँच दल बनता है, जाँच चलती है, न्यायालय में केस चलता है और धीरे धीरे फिर भूल जाते हैं। तब तक जब तक की कोई नया विस्फोट नहीं हो हो जाता है। हालत यह होने लगी है कि अब आतंकवादी हमले बाढ, चक्रवात और सुखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं जैसे लगने लगे हैं। अब इनकी आदत सी होने लगी है. क्या यही हमारी नियति है? सोचिए, 9/11 के बाद अमरीका में और 7/7 के बाद ब्रिटेन में कोई बडा आतंकवादी हमला नहीं हुआ. यहाँ तक कि स्पेन जैसे देश में मेड्रिड धमाकों के बाद कोई हमला नहीं हुआ।

तो फिर भारत में ही क्यों?

क्या हम भारतीय आतंकवाद के खिलाफ लडाई में हार रहे हैं।

दूनिया के समक्ष देश की छवि एक कमजोर राष्ट्र की क्यों बन रही है?

क्या देश के निति निर्धारकों मे ईच्छाशक्ति की कमी है?

क्या हम हद से अधिक उदासीन और सहिष्णु हो गए हैं?

क्या हमारा देश सचमुच में एक कमजोर देश हैं?

यदि हाँ तो इसके उपाय क्या हैं, यदि नहीं तो आखिर चूक कहाँ हो रही है?
 

हिन्दी ब्लॉग टिप्सः तीन कॉलम वाली टेम्पलेट