भाई साब, बडे बुजुर्ग सही कहते थे- "बेटा सपना मत देख"। वरना दिल टुट जाएगा, लेकिन नही. जवानी का जोश, उफनता हुआ गरम खून, और मैने भी सपना देख लिया। लेकिन है इस से पहले की आप पाठकगण कुछ गलत सोचे, हम ख़ुद ही बताये देते हैं - यह सुंदर सपना था तेरह साल बाद ऐशिया विजेता बनने का।
लेकिन भाई साब अपने लड़के बडे शिष्टाचारी है, बचपन में सिखाई हर बात याद है इनको, तो फिर ये कैसे भुल जाते। लो भाई खेलेंगे ही नही, बडे बुजु्गों का इज््त भी रह जायेगा, और इन निठ़््लो का सपना देखने का आदत सुधरेगा।
और लो भाई साब, धोनी के रणबुंकारे बडे बुजु्गों की मान रखने के लिए मुँह की खा कर वापस आ गई। लेकिन इऩकी शान में कोई गुस्ताकी नही, लङको ने मेहनत बहुत की। घुङसवारी की, जल कीङा् की, पोङोसियो के साथ मस्ती की...........कितने थक गये हैं बेचारे। अब आप क्या चाहते हो, जान दे दे आप के लिए।
और ये सुधरना सुधारना क्या लगा रखा हैं? इसकी जरुरत तो आप को हैं। जब देखो जीत, क्या हैं, कोई काम नही हैं क्या। या और कोइ खेल नही बचा हैं इस देश मे??? जाओ यार, हाकी और पता नही कितने हजार और खेल बचे हैं इस देश में, कभी उनपर भी नजरें इनायत कर दो। नही तो चाईना में भी मेडल नही मिलेगा।
Tuesday, July 8, 2008
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