दिल्ली, मुम्बई, हैदराबाद, वाराणसी, मालेगाँव, अजमेर, लखनऊ, इलाहाबाद, जयपूर...
यह सूचि इससे भी बडी है, और आने वाले समय में काफी लम्बी हो सकती है। इन सभी जगहों पर सुनियोजित तरीके से आतंकवादी हमले किए गए। बम विस्फोट करवाए गए और सैंकडों लोगों की जानें गई। हर बार विशेष जाँच दल बनता है, जाँच चलती है, न्यायालय में केस चलता है और धीरे धीरे फिर भूल जाते हैं। तब तक जब तक की कोई नया विस्फोट नहीं हो हो जाता है। हालत यह होने लगी है कि अब आतंकवादी हमले बाढ, चक्रवात और सुखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं जैसे लगने लगे हैं। अब इनकी आदत सी होने लगी है. क्या यही हमारी नियति है? सोचिए, 9/11 के बाद अमरीका में और 7/7 के बाद ब्रिटेन में कोई बडा आतंकवादी हमला नहीं हुआ. यहाँ तक कि स्पेन जैसे देश में मेड्रिड धमाकों के बाद कोई हमला नहीं हुआ।
तो फिर भारत में ही क्यों?
क्या हम भारतीय आतंकवाद के खिलाफ लडाई में हार रहे हैं।
दूनिया के समक्ष देश की छवि एक कमजोर राष्ट्र की क्यों बन रही है?
क्या देश के निति निर्धारकों मे ईच्छाशक्ति की कमी है?
क्या हम हद से अधिक उदासीन और सहिष्णु हो गए हैं?
क्या हमारा देश सचमुच में एक कमजोर देश हैं?
यदि हाँ तो इसके उपाय क्या हैं, यदि नहीं तो आखिर चूक कहाँ हो रही है?
Tuesday, July 1, 2008
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