आखिरकार 195 से ज़्यादा बलिदानों के बुते मुंबई ने फ़िर से अपने रफ़्तार पकड़ ली। कभी न रुकने वाली मुंबई पिछ्ले तीन दिनों से ठहर सी गयी थी। सलाम उन वीरों को जिन्होंने अपने जाबांजी से मुंबा देवी और हाजी अली के इस दुलारे शहर को आतंक की काली साया से एक नयी सुबह दिखायी। सलाम एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे, एनएसजी कमांडो संदीप उन्नीकृष्णन और गजेन्द्र सिंह को जिन्होंने देश के दुश्मनों से लौहा लेते हुए और उनका खात्मा करते-करते अपने प्राण न्यौछावर कर दी। यहाँ मुम्बई फायर ब्रिगेड दल के उन जाबांज कर्मचारियों का उल्लेख करना भी आवश्यक है,जिन्होनें अपने दिलेरी से ऐतिहासिक ‘ताजमहल होटल' को जलने से बचाया। 105 साल पुराने इस ऐतिहासिक होटल को जलाकर आतंक के सौदागर, इस मुल्क को कभी न भुलाने वाला दर्द देना चाहते थे। लेकिन हमेशा आग पर काबु पाने वाले फायर ब्रिगेड दल के इन जाबांजे ने इस बार आतंक की आग पर पानी फेर दिया। यह मुम्बई फायर ब्रिगेड दल के लड़ाके ही थे,जिन्होंने ताज में पहला कदम रखा और कई बंधकों को ताज से सफलतापूर्वक बाहर निकाला। धन्यवाद ताज और ओबेरॉय होटल के कर्मचारियों का जिन्होंने अपनी जान की परवाह किये बिना अपने कर्तव्य का पालन किया।
लेकिन इस आतंकवाद का अंत कहा और कैसे। कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन आतंकवाद रोज़ सुरसा की तरह मुंह फैलाए जा रहा हैं। कही हम राजनीतिक सत्यता के चक्कर में आतंकवादियों के प्रति हमदर्दी का रुख़ अपनाकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी तो नहीं मार रहे। अकसर देखा गया है कि आतंकवादियों द्वारा एक ख़ास वर्ग को धार्मिक एवं अन्य कारणों से भड़काकर, उकसाकर आतंकी घटना को अंजाम दिया जाता है। बिना स्थानीय नागरिको के मदद से कोई भी आतंकवादी हमला हो ही नहीं सकता। मुंबई में भी जिस तरह से आतंकवादी कारवाई को अंजाम दिया गया है स्थानीय नागरिकों की संलिप्तासे इंकार नहीं किया जा सकता।
आतंकवादियों पर कठोर से कठोर कार्रवाई की जाने की जरुरत आन पड़ी हैं। जब अफगानिस्तान जैसे देश के राष्ट्रपति हामिद करजई तालिबान से तंग आकर पाकिस्तान की सीमा में घुसकर तालिबान के खिलाफ सैनिक कार्रवाई की चेतावनी दे सकते हैं तो भारत सरकार क्यों बांग्लादेश और पाकिस्तान में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने में हिचकती है? आखिर क्यों हमेशा धमाकों से सहमकर आम जनता पर बंदिशें लगायी जाती हैं। क्यों नहीं भारत सरकार अमेरिका और इसराइल की तर्ज पर ढूँढो और मारो की नीति अपनाते हुए इन आतंक फैलाने वालों का सफाया कर उनमें पलटवार का ऐसा डर बैठाती हैं, कि कोई भी आतंकवादी या आतंकी संगठन भारत और उसके नागरिकों को नुकसान पहुँचाने से पहले सौ बार सोचने को विवश हो।
हमेशा देखा जाता है कि आतंकवादी गतिविधियों में कम उम्र के युवाओं को इस्तेमाल में लाया जाता हैं। भारत के संविधान ने सभी धर्मों को अपने धर्म के प्रचार, प्रसार व शिक्षा की स्वतंत्रता दी है, पर कई बार इसकी आड़ में बच्चों में बचपन से ही अलगाववाद की भावना भर दी जाती है। मुस्लिम मदरसे हों, सिख स्कूल हों, मिशनरी हों या हिन्दू पाठशाला, सभी के पाठ्यक्रम में एकरूपता लाई जाना चाहिए। कई बार बच्चों में दूसरे धर्मों के प्रति गलत व बुरी धारणाएँ बन जाती हैं, पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से बच्चे के दिमाग में फैली भ्रांतियाँ दूर की जा सकती हैं।
और इन सबसे उपर जरुरत हैं आतंकवाद निरोधी कानून को पुख्ता बनाने की। वर्तमान कानून इस समस्या से निपटने में प्रभावी नहीं है। भारत में कानून बड़े पुराने हैं और अब प्रासंगिक भी नहीं रहे। आतंकवाद निरोधक कानूनों की समय-समय पर समीक्षा हो, जिससे जरूरत पड़ने पर आवश्यक बदलाव या फेरबदल संभव हो। साथ ही जरुरत हैं एक संघीय एजेंसी बनाने की जिसे आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में विशेष अधिकार मिले हो। आतंकवाद पर काबू पाने के लिए आतंकवादियों अथवा आतंकवादी संगठनों के समर्थको व शुभचिंतको पर भी कठोर कार्यवाई की जाने की जरुरत भी आन पड़ी हैं।
अब जागने की जरुरत आन पड़ी हैं वर्ना देश मौत की नींद सो जायेगी।By: Sumit K Jha
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