दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार जरनैल सिंह ने आखिर क्यों प्रैस वार्ता में पी.चिदंबरम की तरफ़ जूता फ़ेंका?? यह कहना कि जूता पी.चिदंबरम को मारा गया था, गलत होगा। पहले क्रम में बैठे जरनैल सिंह अगर पी.चिदंबरम को हानि पहुँचना चाहता, तो वह बहुत असान होता। तो आखिर क्यों फ़ेंका गया जूता??
दरअसल अगर इस पूरे घटनाक्रम से पत्रकारिता हटा दे, तो यह एक आम आदमी का सिस्टम के खिलाफ़ बढता अविश्वास का फ़लसफ़ा मात्र हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में भड़के सिख विरोधी दंगों में मारे गये हजारों निर्दोषों के परिजन आज पच्चीस साल बीत जाने के बावज़ूद न्याय के लिये दर-दर ठोकर खा रहे हैं। कितने आयोग बनी, न्यायपालिका का मखौल बनाया गया। और साथ में मखौल बनाया गया न्याय की उम्मीद लगाये परिजनों का।
और अहम चुनाव के वक्त 1984 के सिख विरोधी दंगों के आरोपी पूर्व केन्द्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर को केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने क्लीन चिट दे दी। सीबीआई ने साथ ही साथ मामले को रद्द करने की रिपोर्ट भी दाखिल कर दी। क्या यह अपने आप में संदेहास्पद नहीं लगता?? जिस कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा सिख विरोधी दंगों को न्यायोचित ठहराया गया हो, उस पार्टी के सरकार से और क्या उम्मीद की जा सकती हैं। यह सरासर न्याय प्रणाली के दुरुपयोग का मामला हैं। सिख विरोधी हिंसा के बाद आपराधिक न्याय प्रणाली का खुब दुरुपयोग, आरोपियों को बचाने के लिये किया गया। ख़ासकर सीबीआई सत्तारुढ़ पार्टियों के हाथ का कठपुतली बन कर रह गयी हैं। जो भी पार्टी सत्ता में आती हैं, सीबीआई को दुधारू गाय की तरह दोहन करती हैं। चाहे वह कांग्रेस हो या फ़िर बीजेपी। लेकिन कांग्रेस ने सीबीआई क कुछ ज्यादा ही दोहन किया हैं।
जो पार्टी भारतीय लोकतंत्र की मापदण्ड तय करने का दावा करे, उससे कम से कम इन बातों की अपेक्षा किसी ने शायद ही की हो। जो पार्टी हर अगले दल पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाये, कम से कम उस पार्टी से न्याय की अपेक्षा तो की ही जा सकती थी। खैर, जरनैल सिंह के जूता ने इतना काम तो कर ही दिया, कि आदरणीय जगदीश टाइटलर जी ने चुनाव से अपना नाम वापस ले लिया। लेकिन क्या यह समाधान हैं??? अगर जगदीश टाइटलर दोषी नहीं हैं, तो आखिर कौन था 1984 के दंगे का मास्टरमांड??? आखिर कब मिलेंगी दंगापीड़ितों को समुचित न्याय??? भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपने जिम्मेंदारी से पीछे नहीं हट सकती।
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Thursday, April 9, 2009
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3 comments:
kuchh nahi hoga yahan, aise hi chalega, sikhon ke vote musalmanon ke barabar hote to sab kuchh ho gaya hota.
जी मै आपके विचार से बिलकुल सहमत हूँ. लेकिन जरनैल सिंह के द्वारा अपनाया गया यह विरोध प्रदर्शन मिडिया जगत के लिए बहुत ही शर्मनाक है
मनीष जी, मैं आपकी बातों से सहमत हुं। लेकिन जरनैल सिंह पत्रकार होने के साथ साथ एक इंसान भी हैं। भावनाओं में बह कर कोई भी ऐसा गलती कर सकता हैं। लेकिन उसकी माँग जायज थी।
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